नैनीताल के जंगलों में भयावह वनाग्नि की घटना ने उत्तराखंड के लोगों और प्रशासन को चिंता में डाल दिया है। इस आग ने न केवल वन संपदा को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि वन्यजीवों के आवास को भी खतरे में डाल दिया है। इस आपात स्थिति का सामना करते हुए, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हल्द्वानी में एक समीक्षा बैठक की और आग बुझाने के लिए भारतीय सेना और वायु सेना की सहायता ली1।
इस बैठक में, मुख्यमंत्री ने वन विभाग के अधिकारियों को आपसी समन्वय के साथ काम करने का निर्देश दिया। उन्होंने फायर सीजन तक अधिकारियों और कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द करने के भी आदेश दिए1। इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने नैनीताल क्षेत्र में वनाग्नि से हुए नुकसान का हवाई सर्वेक्षण भी किया और जंगलों में आग लगाने वाले अराजक तत्वों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने का संकल्प लिया2।
इस घटना के चलते, उत्तराखंड में अब तक 708 हेक्टेयर वन भूमि आग से नष्ट हो चुकी है और 584 वनाग्नि के मामले सामने आए हैं1। वन विभाग ने इस समस्या का सामना करने के लिए वनाग्नि सुरक्षा दल गठित किया है और अपराधियों को पकड़ने के लिए सेटेलाइट, कैमरों और दूरबीन का उपयोग कर रहे हैं2।
इस आग की वजह से नैनीताल और आसपास के क्षेत्रों में लगभग 100 हेक्टेयर भूमि जल कर खाक हो गई है, और इसकी लपटें हाईकोर्ट कॉलोनी तक जा पहुंची हैं1। इस आग को बुझाने के लिए सेना की मदद मांगी गई है, और वनाग्नि रोकथाम के लिए वन विभाग के प्रयासों के साथ-साथ जन सहभागिता और जन भागीदारी भी आवश्यक है2।
इस तरह की घटनाएं न केवल पर्यावरणीय बल्कि सामाजिक चुनौतियां भी प्रस्तुत करती हैं। वनाग्नि के इस तरह के प्रकोप से निपटने के लिए समग्र और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है, जिसमें सरकारी एजेंसियों, स्थानीय समुदायों और विशेषज्ञों का सहयोग शामिल है। इसके अलावा, वनाग्नि की रोकथाम और नियंत्रण के लिए आधुनिक तकनीकी और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग भी महत्वपूर्ण है। इस प्रकार के प्रयासों से ही हम अपने जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा कर सकते हैं और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोक सकते हैं।
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